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Faiz Ahmad Faiz

Faiz Ahmad Faiz

@faiz-ahmad-faiz

Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world. Contemporary poet of sher, ghazal, and nazm — weaving emotion and rhythm into words loved across the Hindi–Urdu world.

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बहार आई तो जैसे यक-बार

बहार आई तो जैसे यक-बार
लौट आए हैं फिर अदम से

शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से

शाम के पेच-ओ-ख़म सितारों से
ज़ीना ज़ीना उतर रही है रात

हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द

हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुदारातों के बा'द
फिर बनेंगे आश्ना कितनी मुलाक़ातों के बा'द

निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ

निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले

चश्म-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं

चश्म-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं
तोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं

गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त

गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त
गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन

chand-roz-aur-meri-jaan

चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम

तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम

तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए

आज के नाम

आज के नाम
और

ये गलियों के आवारा बे-कार कुत्ते

ये गलियों के आवारा बे-कार कुत्ते
कि बख़्शा गया जिन को ज़ौक़-ए-गदाई

इस वक़्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है

इस वक़्त तो यूँ लगता है अब कुछ भी नहीं है
महताब न सूरज, न अँधेरा न सवेरा

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर

ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं

और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को

और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे

तुम मिरे पास रहो

तुम मिरे पास रहो
मिरे क़ातिल, मिरे दिलदार मिरे पास रहो

आज फिर दर्द-ओ-ग़म के धागे में

आज फिर दर्द-ओ-ग़म के धागे में
हम पिरो कर तिरे ख़याल के फूल

वो वक़्त मिरी जान बहुत दूर नहीं है

वो वक़्त मिरी जान बहुत दूर नहीं है
जब दर्द से रुक जाएँगी सब ज़ीस्त की राहें

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल
मध भरा हर्फ़ कोई ज़हर भरा हर्फ़ कोई

(1)

(1)
ताज़ा हैं अभी याद में ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम

मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर

मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर
हुआ फिर से हुक्म सादिर